






पब्लिक न्यूज आसनसोल :– बांगला नववर्ष के मौके शराब के ठेकों पर बिक रही कवि रवींद्रनाथ टैगोर की लिखी कविता वाली शराब की बोतलें…बांगला पख ने जताई त्रिव निंदा अगर कंपनी ने शराब की बोतलों से नही हटवाया बांगला कविता तो होगी प्रतिवाद देंगे कंपनी के खिलाफ डिपोटेशन…आसनसोल, पश्चिम बंगाल मे मंगलवार को बहोत ही धूमधाम से बांगला नववर्ष मनाया जा रहा है, सोसल मिडिया से लेकर वाट्सअप पर हर कोई अपनों और सगे सम्बंधियों को बांगला नववर्ष की बधाइयाँ देने मे लगा है, कुछ बंगाली समाज ऐसे भी हैं जो एक दीसरे को मिठाइयाँ देकर और खिलाकर भी एक दूसरे को बांग्ला नववर्ष की बधाइयाँ दे रहे हैं, इन्ही बधाइयों के बिच शराब के ठेकों से लेकर बार तक सिर्फ और सिर्फ लोगों को 100 पाईपर विस्की पीते और खरीदते हुए देखा गया, जहाँ लोगों के बिच चर्चाएं भी होती हुई दिखीं वह चर्चाएं थीं 100 पाईपर शराब की बोतल पर लगे रेपर की जिस रैपर पर विश्वविख्यात कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा लिखी गई प्रचलित कविता दुइ पाखी की कुछ पंक्तियाँ लिखी गई थीं, जिन पंक्तियों को लेकर शराब खरीदने वालों से लेकर शारब बेचने और पिने वालों तक चर्चाओं का माहौल रहा, हर कोई शराब की बोतल पर लिखी कवि की इन पंक्तियों के शब्दों की जाल मे उलझा दिखा और उसके अलग -अलग मायने निकालकर अपने जीवन से जोड़ता दिखा, इसके अलावा बांगला पखो के पश्चिम बर्धमान जिला सभापति अखय बैनर्जी ने बांगला पक्खो की ओर से त्रिव निंदा करते हुए 100 पाईपर कंपनी को यह खुली चेतावनी दी के उनका यह स्लोगन था की बंगाल मे हर दीवार कल कारखाने दुकानों वाहनों पर बांगला लिखा अनिवार्य होना चाहिये पर इसका मतलब यह नही की शराब की कम्पनियाँ अपनी शराब की बोतलों को बेचने के लिये विश्वविख्यात कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की लिखी बहूचर्चित कविता की पंकितियाँ लिखकर बेचे, कंपनी अगर जल्द से जल्द शराब की बोतल से बांग्ला लिखा कविता नही हटाए तो वह मजबूरन कंपनी के खिलाफ सड़क पर प्रतिवाद करने उतरेंगे और कंपनी के खिलाफ डिपोटेशन भी देंगे ऐसे मे कवि की इन पंक्तियों के बारे मे अगर हम जानने का प्रयास करें तो कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की दुइ पाखी कविता का मायने है दो पक्षी एक पिंजरे का पक्षी जो सोने के पिंजरे में था, तो दूसरा वन का पक्षी जो जंगल में रहता था, एक दिन दोनों के बीच मुलाकात हुई। कौन जानता है भगवान के मन में क्या था,
वन-पक्षी बोला, “प्रिय पिंजरे-पक्षी, आओ हम दोनों साथ-साथ जंगल में चलें।”
पिंजरे के पक्षी ने उत्तर दिया, “प्रिय वन-पक्षी, आओ हम दोनों इस पिंजरे में चुपचाप रहें।”
वन-पक्षी कांप उठा, “नहीं, मैं कभी जंजीरों में नहीं बँधूँगा।”
पिंजरे का पक्षी बोला, “हाय! मैं जंगल में कैसे जाऊँ?”
दो पक्षियों की एक साधारण सी कहानी। एक पिंजरे में है, दूसरा बाहर आज़ाद घूम रहा है। एक दिन वे दोनों मिलते हैं, और कविता उनके मिलने का श्रेय भगवान या नियति को देती है। नियति की यह अवधारणा है कि दो विपरीत शक्तियों को एक साथ लाती है और उनकी बातचीत में सहायता करती है, जो वास्तविक जीवन में भी देखी जा सकती है, जिस तरह के रिश्ते हमारे बीच हैं। कविता में इन दो पक्षियों के बीच की बातचीत में एक दार्शनिक अर्थ के अलावा एक मार्मिक कहानी भी है। जो पूरी कविता पढ़ने के बाद ही कविता पढ़ने वालों को समझ मे आएगी, ऐसे मे बांगला नववर्ष के मौके पर 100 पाईपर विस्की के बोतल पर विश्वविख्यात कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा बांगला भाषा मे लिखी गई बहूचर्चित कविता दुइ पाखी की कुछ लाईन लिखी गई है, जो शराब के ठेकों पर शराब खरीदने वालों की ध्यान अपनी ओर खूब केंद्रित कर रही है, लोग कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की लिखी गई कविता की चंद पंक्तियाँ पढ़ तो रहे ही हैं साथ मे खूब खरीद भी रहे हैं, कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की बहूचर्चित कविता दुइ पाखी की लिखी हुई कविता वाली 100 पाईपर की शराब खरीद रहे लोगों की अगर माने तो बांगला नववर्ष के मौके पर बंगाली समाज के लिये यह एक सबसे बढ़ा उपहार है, जो उपहार 100 पाईपर शराब बनाने वाली कंपनी ने उनको दिया है, उनका यह भी कहना है की वह अक्सर अपनी जिंदगी मे काम काज की व्यस्थता को लेकर बंगाल की भाषा यहाँ की सांसकुर्तीक यहाँ की कविताएं और कहानियों से दूर हट जाते हैं, ऐसे मे उस दुरी को कम करने का काम भी हुआ है, वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है की इतने बड़े विश्वविख्यात कवि के द्वारा लिखी गई इतनी परचालित कविता को शराब की बोतल के ऊपर लगे रैपर और डब्बे मे इस्तेमाल किया गया है वो भी बांगला नववर्ष के मौके पर जिस नववर्ष को हर बंगाली समाज काफी धूम -धाम से मनाते हैं, यह कहीं ना कहीं गलत हुआ है और कवि रबिन्द्र नाथ टैगोर की छवि को धूमिल करने का काम किया गया है जिसका वह विरोध करते हैं।










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